‘’ राजस्थान में हिन्डौन नामक स्थान है जहाँ कभी इन्डवन नामक वन था। इस हिन्डौन को एक कायस्थ ने आबाद किया था।
हिन्डौन के कायस्थ गाँव करसोली (जो हिन्डौन से करीब 4 मील की दूरी पर है) के बिस्वेदार थे। ऐसी किवदंती है कि करसोली में एक झगड़ा हुआ जिसमें करसोली के तमाम कायस्थ मारे गये। एक कायस्थ बहादुरी के साथ लड़ा, उसका सिर शरीर से अलग होने पर भी लड़ते-लड़ते मरा जो बाद में हिन्डौन के कायस्थों का देतवला के रुप में गोरल बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुआ जिसकी जात हिन्डौन के कायस्थों का गोत्र करसोलिया अब तक परम्परा चली आ रही है।
करसौर्इ से एक कायस्थ स्त्री को जिसका पीहर दिल्ली था और जो गर्भवती थी कायस्थों के पुरोहित किसी प्रकार छिपाकर दिल्ली ले गये। वहीं जाकर उसके लड़का पैदा हुआ। उसका ननिहाल में पालन-पोषण हुआ। जब वह बड़ा हुआ तो अपनी अदभुत बुद्धि और वीरता के नाना रुप प्रदर्शन करने लगा।
अकबर की रानी हीरादेर्इ अजमेर हज को गर्इ तो इस कायस्थ को भी अपने साथ ले गर्इ। रास्ते में हिन्डवन (जिसको कि आजकल हिन्डौन कहते हैं) में पड़ाव डाला। रात को एक शेर की आवाज आर्इ। ज्योतिषियों ने रानी से कहा कि जो आदमी इस समय इस शेर का शिकार करेगा उसकी सन्तान एक हजार वर्ष तक इसी प्रकार यहाँ पर इसी जगह राज्य करेगी। रानी के साथ जो अंगरक्षक आये थे वह सब शेर के शिकार को निकले। यह कायस्थ भी जो रानी के साथ आया था, शिकार के लिए गया। इसने शेर का शिकार किया और शेर के कान व पूछ काट कर अपने साथ सबूत के लिए रख लिए। सभी ने अपनी-अपनी डींग हाकी परन्तु जब इस कायस्थ ने अपना प्रमाण दिया तो सबकी बोलती बन्द हो गर्इ। यहाँ से अजमेर हज करके रानी वापस दिल्ली पहुँची। इस कायस्थ की मां अपने बेटे से कहा करती थी कि हम करसोली के रहने वाले हैं। जब अकबर को यह पता चला कि हिन्डवन मे जिसने शेर का शिकार किया है वह एक कायस्थ है जो उसके यहाँ नौकर है, तो अकबर ने उसको बुला कर पूछा ‘तुम क्या चाहते हो’ ? तो उसने उत्तर दिया कि जहाँपनाह यदि वास्तव में आप मेरे से खुश हैं तो मेरे लिए करसौली पर आक्रमण करने की इजाजत दी जाय। अकबर ने अपनी फौज इसके साथ भेजी और करसौली पर हमला बोल दिया। वह जीत गया और इस प्रकार इसको अपनी बिस्वेदारी वापिस मिली। इसने करसौली के बजाय हिन्डवन में अपने को आबाद किया। हिन्डवन का ही नाम हिन्डौन है।
हिन्डौन के कायस्थों में हरदेव जी का मंदिर, बड़ी हवेली ठाकुर वाला कुआँ और हरदेव जी की बावड़ी जो वर्तमान हार्इस्कूल के पास है, स्थापित की।
यहाँ के कायस्थ जयपुर, जोधपुर, उज्जैन, हैदराबाद, दिल्ली तथा गया बगैरा में मिलते हैं। यहा के एक कायस्थ हैदराबाद में हैं और उनको राजा का खिताब है। उनमें राजा मुरलीधर प्रसिद्ध हैं। आपके गुरु हिन्डौन में रघुनाथ जी के महन्त हैं। इनके परिवार वाले आजकल अमरीका में रहते हैं। यहाँ के एक कायस्थ श्री राम निवास जी माथुर जयपुर में म्यूनिस्पिल कमिश्नर हुये। आधुनिक सामाजिक क्षेत्र में कुन्जबिहारी लाल जी माथुर प्रसिद्ध हैं जिन्होंने सन 1951 में भरतपुर में अखिल राजस्थान कायस्थ सम्मेलन बुलाया था।
हिन्डौन के कायस्थ गाँव करसोली (जो हिन्डौन से करीब 4 मील की दूरी पर है) के बिस्वेदार थे। ऐसी किवदंती है कि करसोली में एक झगड़ा हुआ जिसमें करसोली के तमाम कायस्थ मारे गये। एक कायस्थ बहादुरी के साथ लड़ा, उसका सिर शरीर से अलग होने पर भी लड़ते-लड़ते मरा जो बाद में हिन्डौन के कायस्थों का देतवला के रुप में गोरल बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुआ जिसकी जात हिन्डौन के कायस्थों का गोत्र करसोलिया अब तक परम्परा चली आ रही है।
करसौर्इ से एक कायस्थ स्त्री को जिसका पीहर दिल्ली था और जो गर्भवती थी कायस्थों के पुरोहित किसी प्रकार छिपाकर दिल्ली ले गये। वहीं जाकर उसके लड़का पैदा हुआ। उसका ननिहाल में पालन-पोषण हुआ। जब वह बड़ा हुआ तो अपनी अदभुत बुद्धि और वीरता के नाना रुप प्रदर्शन करने लगा।
अकबर की रानी हीरादेर्इ अजमेर हज को गर्इ तो इस कायस्थ को भी अपने साथ ले गर्इ। रास्ते में हिन्डवन (जिसको कि आजकल हिन्डौन कहते हैं) में पड़ाव डाला। रात को एक शेर की आवाज आर्इ। ज्योतिषियों ने रानी से कहा कि जो आदमी इस समय इस शेर का शिकार करेगा उसकी सन्तान एक हजार वर्ष तक इसी प्रकार यहाँ पर इसी जगह राज्य करेगी। रानी के साथ जो अंगरक्षक आये थे वह सब शेर के शिकार को निकले। यह कायस्थ भी जो रानी के साथ आया था, शिकार के लिए गया। इसने शेर का शिकार किया और शेर के कान व पूछ काट कर अपने साथ सबूत के लिए रख लिए। सभी ने अपनी-अपनी डींग हाकी परन्तु जब इस कायस्थ ने अपना प्रमाण दिया तो सबकी बोलती बन्द हो गर्इ। यहाँ से अजमेर हज करके रानी वापस दिल्ली पहुँची। इस कायस्थ की मां अपने बेटे से कहा करती थी कि हम करसोली के रहने वाले हैं। जब अकबर को यह पता चला कि हिन्डवन मे जिसने शेर का शिकार किया है वह एक कायस्थ है जो उसके यहाँ नौकर है, तो अकबर ने उसको बुला कर पूछा ‘तुम क्या चाहते हो’ ? तो उसने उत्तर दिया कि जहाँपनाह यदि वास्तव में आप मेरे से खुश हैं तो मेरे लिए करसौली पर आक्रमण करने की इजाजत दी जाय। अकबर ने अपनी फौज इसके साथ भेजी और करसौली पर हमला बोल दिया। वह जीत गया और इस प्रकार इसको अपनी बिस्वेदारी वापिस मिली। इसने करसौली के बजाय हिन्डवन में अपने को आबाद किया। हिन्डवन का ही नाम हिन्डौन है।
हिन्डौन के कायस्थों में हरदेव जी का मंदिर, बड़ी हवेली ठाकुर वाला कुआँ और हरदेव जी की बावड़ी जो वर्तमान हार्इस्कूल के पास है, स्थापित की।
यहाँ के कायस्थ जयपुर, जोधपुर, उज्जैन, हैदराबाद, दिल्ली तथा गया बगैरा में मिलते हैं। यहा के एक कायस्थ हैदराबाद में हैं और उनको राजा का खिताब है। उनमें राजा मुरलीधर प्रसिद्ध हैं। आपके गुरु हिन्डौन में रघुनाथ जी के महन्त हैं। इनके परिवार वाले आजकल अमरीका में रहते हैं। यहाँ के एक कायस्थ श्री राम निवास जी माथुर जयपुर में म्यूनिस्पिल कमिश्नर हुये। आधुनिक सामाजिक क्षेत्र में कुन्जबिहारी लाल जी माथुर प्रसिद्ध हैं जिन्होंने सन 1951 में भरतपुर में अखिल राजस्थान कायस्थ सम्मेलन बुलाया था।