श्री शिव छत्रपति के स्वराज स्थापना में कायस्थ वीरो का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । शिवाजी महाराज के सर्वोपरि मदत से लेकर स्वराज के बलिदान करने वालो में कायस्थ प्रभु का योगदान अग्रणीय है । शिव छत्रपति महाराज के परम सहायक व् विस्वसनीय वीरो का कुछ नाम इस प्रकार है ।
१. रायरेश्वर के मंदिर में दुध भात व् बेल भंडारा ले कर हजार बारह सौ सैनिको के साथ हिन्दवी साम्राज्य बनाने व् शपथ दिलाने वाले -- दादाजी नर प्रभु देशपांडे -कुलकर्णी गुप्ते ।
२ .मुसलमानों के राज्य में जगह जगह घूमते हुए ,उनके सैनिको को मीठी मीठी वाणी बोलकर ,स्वराज्य की सथापना के लिए अपने (शिवाजी महाराज के ) सैनिको में मिलाने वाले वीर पिलाजी दुर्वे व उनके भाई यमाजी मावजी प्रभु दुर्वे ।
३ .बाळाजी आवजी चिटणीस छत्रपति के सचिव व् सहकारी थे ।
४ .शिवाजी महाराज का गढ़ बनवाने का जिम्मा महान दुर्गकार मल्हार राव नारायण चौबळ (चेउलकर) का था ।
५ शिवाजी के राज्य में शत्रु राजाओ ,आक्रमणकारियों पर नजर रखने वाले गुप्तहेर ( जासूसी विभाग ) के प्रमुख विश्वासराव बाबाजी दिघे – देशपांडे थे इन्हें अनेक भाषाओ का ज्ञान था ।
६ .छत्रपति शिवराय के पारसनिस ( राजा के तरफ से बात करने वाले ,भाषाओ के विद्वान जिन्हें कई भाषाओ की जानकारी होती है ) निळकंठ उर्फ निळो येसाजी प्रभु थे इन्हें मराठी हिंदी मगधी पाली तेलगु द्रविनी आदि भाषाओ का उत्तम ज्ञान था ।
७.छत्रपति की आज्ञा पाकर कल्याण का खजाना लुट कर महाराज को सौपने वाले कार्निक ,देशपांडे तोर्नेकर व् राजमाचिकर ये सब लोग कायस्थ थे ।
८ .शिवाजी महाराज के अंगरक्षक दलों के प्रमुख गंगो भंगाजी वाकनीस थे । प्रधान गंगो भंगाजी वाकनिस इतने शूरवीर थे की इनका डर औरंगजेब को थी । इतिहास इसका प्रमाण है ।
९. रायगड किले के खजांची का पद मुरार बाजी देशपांडे के वन्सजो के पास थी ।
१० दादाजी रघुनाथ प्रभु देशपांडे ये वीर सरदार थे शिवाजी के , इनके बिना शिवाजी महाराज किसी भी प्रयोजन में नहीं जाते थे ।
११ पुरंदर नाम के महत्व पूर्ण कीले के रक्षा प्रमुख शूरवीर सरदार मुरारबाजी देशपांडे थे । घनघोर युद्ध के बाद भी उन्होंने मुग़ल सरदार दिलेर खान को किला नहीं दिया । मुरारबाजी इस लड़ाई में बलिदान दे दिए पर उन्होंने किले को शत्रुओ के हाथो में जाने से बचा लिया ।
१२' वीररत्न बाजी प्रभू देशपांडे ,ये महाराज के प्रमुख सरदार थे । विशाल गड की तरफ जाते समय ,घोड़ खिंडी में , मुगलो के विरुद्ध इनकी लड़ाई जगत प्रसिद्ध है ।
१३ शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के लिए 32 मन (40 X 32 kg) सोने से राज सिंहाशन तैयार करने वाले अण्णो दत्ताजी चित्रे थे ।
१४ शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक करने का सलाह उनके निजी सचिव बालाजी चिटनिस ने दिया था । मान्यता यह थी की राज्याभिषेक हो जाने पर राजा धार्मिक विषयों में हस्तक्षेप कर सकता है क्यों की राजा का धार्मिक रूप से ब्राहमणों से ज्यादा अधिकार हो जाता है तथा वह ब्राहमणों पर शाशन भी कर सकता है । इसलिए ब्राहमणों ने एक सुर में शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का विरोध किया । तब गागा भट्ट को लाकर महाराज का राज्याभिषेक करने की योजना बनाकर बाला जी चिटनिस ने महाराज का राज्याभिषेक किया ।
ऐसे ये महान कायस्थ वीर स्वराज्य स्थापना के महत्वपूर्ण और महान काम में एकनिष्ठ होकर मदत किया । महाराज को कायस्थों पर पर पूर्ण विस्वाश था इस विषय में एक किवदंती है की -
हमेशा से कायस्थ द्वेष रखने वाले पंडितो को यह बात पसंद नहीं थी कि कायस्थ महत्वपूर्ण पदों पर कायस्थ हो । इस लिए उन्होंने महाराज से प्रार्थना की की कायस्थों को महत्वपूर्ण पदों से हटा कर पंडितो को रखा जाय तब शिवाजी महाराज का उत्तर था जहा कायस्थ होते हैं वहां दगाबाजी ,धोकेबाजी नहीं होती है इसलिए उन्हें प्रत्येक गढ का का मालिक कायस्थ ही थे ।
हिन्दवी साम्राज्य की स्थापना में कायस्थों द्वारा किये गए त्याग तो स्मरण करते हुए श्री प्रबोधन ठाकरे (स्वर्गीय बाला साहेब के पिताजी ) ने कविता लिखी जिसकी लाइने इस प्रकार हैं -
राज्य मर्हाठी श्री.शिवबांचे का कायस्थांचे
कायस्थांच्या रक्तावरती बुरुज उभे त्यांचे,
ज्या राज्याची प्राणप्रतीष्ठा कायस्थे केली,
अवतारी शिवमुर्ती मग वरती स्थापन झाली…..
१. रायरेश्वर के मंदिर में दुध भात व् बेल भंडारा ले कर हजार बारह सौ सैनिको के साथ हिन्दवी साम्राज्य बनाने व् शपथ दिलाने वाले -- दादाजी नर प्रभु देशपांडे -कुलकर्णी गुप्ते ।
२ .मुसलमानों के राज्य में जगह जगह घूमते हुए ,उनके सैनिको को मीठी मीठी वाणी बोलकर ,स्वराज्य की सथापना के लिए अपने (शिवाजी महाराज के ) सैनिको में मिलाने वाले वीर पिलाजी दुर्वे व उनके भाई यमाजी मावजी प्रभु दुर्वे ।
३ .बाळाजी आवजी चिटणीस छत्रपति के सचिव व् सहकारी थे ।
४ .शिवाजी महाराज का गढ़ बनवाने का जिम्मा महान दुर्गकार मल्हार राव नारायण चौबळ (चेउलकर) का था ।
५ शिवाजी के राज्य में शत्रु राजाओ ,आक्रमणकारियों पर नजर रखने वाले गुप्तहेर ( जासूसी विभाग ) के प्रमुख विश्वासराव बाबाजी दिघे – देशपांडे थे इन्हें अनेक भाषाओ का ज्ञान था ।
६ .छत्रपति शिवराय के पारसनिस ( राजा के तरफ से बात करने वाले ,भाषाओ के विद्वान जिन्हें कई भाषाओ की जानकारी होती है ) निळकंठ उर्फ निळो येसाजी प्रभु थे इन्हें मराठी हिंदी मगधी पाली तेलगु द्रविनी आदि भाषाओ का उत्तम ज्ञान था ।
७.छत्रपति की आज्ञा पाकर कल्याण का खजाना लुट कर महाराज को सौपने वाले कार्निक ,देशपांडे तोर्नेकर व् राजमाचिकर ये सब लोग कायस्थ थे ।
८ .शिवाजी महाराज के अंगरक्षक दलों के प्रमुख गंगो भंगाजी वाकनीस थे । प्रधान गंगो भंगाजी वाकनिस इतने शूरवीर थे की इनका डर औरंगजेब को थी । इतिहास इसका प्रमाण है ।
९. रायगड किले के खजांची का पद मुरार बाजी देशपांडे के वन्सजो के पास थी ।
१० दादाजी रघुनाथ प्रभु देशपांडे ये वीर सरदार थे शिवाजी के , इनके बिना शिवाजी महाराज किसी भी प्रयोजन में नहीं जाते थे ।
११ पुरंदर नाम के महत्व पूर्ण कीले के रक्षा प्रमुख शूरवीर सरदार मुरारबाजी देशपांडे थे । घनघोर युद्ध के बाद भी उन्होंने मुग़ल सरदार दिलेर खान को किला नहीं दिया । मुरारबाजी इस लड़ाई में बलिदान दे दिए पर उन्होंने किले को शत्रुओ के हाथो में जाने से बचा लिया ।
१२' वीररत्न बाजी प्रभू देशपांडे ,ये महाराज के प्रमुख सरदार थे । विशाल गड की तरफ जाते समय ,घोड़ खिंडी में , मुगलो के विरुद्ध इनकी लड़ाई जगत प्रसिद्ध है ।
१३ शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के लिए 32 मन (40 X 32 kg) सोने से राज सिंहाशन तैयार करने वाले अण्णो दत्ताजी चित्रे थे ।
१४ शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक करने का सलाह उनके निजी सचिव बालाजी चिटनिस ने दिया था । मान्यता यह थी की राज्याभिषेक हो जाने पर राजा धार्मिक विषयों में हस्तक्षेप कर सकता है क्यों की राजा का धार्मिक रूप से ब्राहमणों से ज्यादा अधिकार हो जाता है तथा वह ब्राहमणों पर शाशन भी कर सकता है । इसलिए ब्राहमणों ने एक सुर में शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का विरोध किया । तब गागा भट्ट को लाकर महाराज का राज्याभिषेक करने की योजना बनाकर बाला जी चिटनिस ने महाराज का राज्याभिषेक किया ।
ऐसे ये महान कायस्थ वीर स्वराज्य स्थापना के महत्वपूर्ण और महान काम में एकनिष्ठ होकर मदत किया । महाराज को कायस्थों पर पर पूर्ण विस्वाश था इस विषय में एक किवदंती है की -
हमेशा से कायस्थ द्वेष रखने वाले पंडितो को यह बात पसंद नहीं थी कि कायस्थ महत्वपूर्ण पदों पर कायस्थ हो । इस लिए उन्होंने महाराज से प्रार्थना की की कायस्थों को महत्वपूर्ण पदों से हटा कर पंडितो को रखा जाय तब शिवाजी महाराज का उत्तर था जहा कायस्थ होते हैं वहां दगाबाजी ,धोकेबाजी नहीं होती है इसलिए उन्हें प्रत्येक गढ का का मालिक कायस्थ ही थे ।
हिन्दवी साम्राज्य की स्थापना में कायस्थों द्वारा किये गए त्याग तो स्मरण करते हुए श्री प्रबोधन ठाकरे (स्वर्गीय बाला साहेब के पिताजी ) ने कविता लिखी जिसकी लाइने इस प्रकार हैं -
राज्य मर्हाठी श्री.शिवबांचे का कायस्थांचे
कायस्थांच्या रक्तावरती बुरुज उभे त्यांचे,
ज्या राज्याची प्राणप्रतीष्ठा कायस्थे केली,
अवतारी शिवमुर्ती मग वरती स्थापन झाली…..