रवि शंकर प्रसाद का जन्म बिहार में पटना के एक प्रख्यात कायस्थ परिवार में हुआ। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से बी०ए०(ऑनर्स), एम०ए०(राजनीति विज्ञान) तथा एलएल०बी० की डिग्रियाँ लीं। उनके पिता ठाकुर प्रसाद पटना उच्च न्यायालय के प्रतिष्ठित वकील थे तथा तत्कालीन जनसंघ (वर्तमानकाल में भाजपा) के प्रमुख संस्थापकों में से एक थे। उनका विवाह ३ फरवरी १९८२ को डॉ० माया शंकर के साथ हुआ। वे पटना विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर हैं।
प्रसाद ने 1970 के दशक में इन्दिरा गांधी की सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शनों का आयोजन कर छात्र नेता के रूप में अपना राजनीतिक जीवन आरम्भ किया। आपातकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में उन्होंने बिहार में छात्र आन्दोलन का नेतृत्व किया तथा जेल भी गए। वे कई वर्षों तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ जुड़े रहे और संगठन में विभिन्न पदों पर आसीन रहे। छात्र जीवन में वे पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के सहायक महासचिव और विश्वविद्यालय की सीनेट तथा वित्त समिति, कला और विधि संकाय के सदस्य रह चुके हैं। एक वकील के रूप में रवि शंकर प्रसाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक पेशेवर वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। उन्होंने १९८० में पटना उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस शुरू की थी। पटना उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ द्वारा उन्हें वर्ष १९९९ में वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया। २००० में उनका नामांकन सर्वोच्च न्ययायालय में हुआ। बिहार के पूर्व मुख्य मन्त्री और पूर्व केंद्रीय रेल मन्त्री लालू प्रसाद यादव के विरुद्ध कुख्यात चारा घोटाले और कोलतार घोटाले में जनहित याचिका पर बहस करने वाले वे प्रमुख वकील थे। वे पटना उच्च न्यायालय में कई मामलों में पूर्व उप प्रधान मन्त्री लालकृष्ण आडवाणी के वकील भी रहे। उन्होंने विधि एवं चिकित्सा तथा पेटेण्ट कानून पर अन्तर्राष्ट्रीय कांग्रेसों में भाग लिया। उन्होंने बड़ी संख्या में सार्वजनिक, निजी एवं कार्पोरेट निकायों के मुकदमे लड़े हैं। वे रेलवे, बेनेट एण्ड कोलमैन, डाबर आदि प्रमुख संगठनों के न्यायिक मुकदमे भी संभालते रहे हैं। वे बिहार बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड के वरिष्ठ वकील रहे हैं। नर्मदा बचाओ आन्दोलन मामला, टी०एन० थिरुमपलाड बनाम भारत संघ, रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (बिहार विधान सभा भंग मामला) तथा भारत में चिकित्सा शिक्षा पर प्रो. यशपाल का मामला, उनके द्वारा लड़े गए ऐतिहासिक मामलों में से हैं। २०१० में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ में लम्बे समय से चल रहे अयोध्या मुकदमे के तीन अधिवक्ताओं में से प्रसाद भी एक थे। एक राजनेता के रूप में वे वर्षों तक भाजपा की युवा शाखा तथा पार्टी संगठन में राष्ट्रीय स्तर के उत्तरदायित्व संभालते रहे हैं। सन् २००० में वह सांसद बने और सन् २००१ में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कोयला एवं खान राज्य मंत्री रहे। वे भाजपा के मुख्य प्रवक्ता हैं। एक मन्त्री के रूप में 1 जुलाई 2002 को प्रसाद को विधि एवं न्याय मन्त्रालय में राज्य मन्त्री का अतिरिक्त भार दिया गया। कार्यभार संभालने के एक पखवाड़े के अन्दर उन्होंने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन हेतु एक विधेयक तैयार किया और फास्ट ट्रैक अदालतों की प्रक्रिया को गति दी। सूचना एवं प्रसारण राज्य मन्त्री के रूप में उन्होंने रेडियो, टेलीविजन और एनिमेशन क्षेत्र में सुधारों तथा गोवा में भारतीय अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के केन्द्र की स्थापना की शुरुआत की। अप्रैल 2002 में, उन्हें भारतीय शिष्टमण्डल के नेता के रूप में डरबन (दक्षिण अफ्रीका) गुट निरपेक्ष मन्त्रिस्तरीय बैठक में भाग लेने के लिए भेजा गया था। इसके बाद उन्हें गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के मन्त्रिस्तरीय प्रतिनिधिमण्डल में भारतीय सदस्य के रूप में रामल्ला में फिलिस्तीनी नेता स्वर्गीय यासिर अराफात से मिलकर उनके साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए भेजा गया। उन्हें राष्ट्रमण्डल कानून मन्त्री शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारतीय शिष्टमण्डल के नेता के रूप में सेण्ट विंसेन्ट (वेस्टइण्डीज) भेजा गया। उन्होंने कान, वेनिस और लन्दन फिल्म समारोहों में भारतीय प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व किया। अक्टूबर 2006 में उन्हें न्यूयॉर्क में हुई 61वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ भेजा गया। भाजपा के प्रवक्ता के रूप में प्रसाद 2006 में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने और अप्रैल 2006 में बिहार से राज्य सभा के लिए पुनः सांसद चुने गए। 2007 में उन्हें फिर भारतीय जनता पार्टी के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में नियुक्त किया गया। पिछले 10 वर्षों से वे भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। वे विभिन्न संसदीय समितियों के भी सदस्य हैं। हाल ही में वे उत्तरांचल विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के प्रभारी थे। 2009 में लोकसभा के लिए चुनाव अभियान में उन्होंने विभिन्न टेलीविजन चैनलों पर भाजपा की स्थिति प्रस्तुत की है। वे बातचीत में वहुधा यह वाक्य दोहराते हैं-"लेट मी टेल यू माई गुड फ्रेड! (यार! मुझे भी बताने दीजिए।)" संभाले गए पद 1991 से 95 तक दो कार्यकाल के लिए भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष 1995 से सदस्य, राष्ट्रीय कार्यकारिणी, भारतीय जनता पार्टी अप्रैल 2000 राज्य सभा सदस्य निर्वाचित मई 2000 से 2001 तक पेट्रोलियम,रसायन तथा वित्त मन्त्रालय की सलाहकार समितियों के सदस्य 1 सितम्बर 2001 से 29 जनवरी 2003 तक कोयला और खान मन्त्रालय में राज्य मन्त्री 1 जुलाई 2002 से 29 जनवरी 2003 तक विधि और न्याय मन्त्रालय में राज्य मन्त्री का अतिरिक्त प्रभार 29 जनवरी 2003 से मई 2004 तक सूचना और प्रसारण मन्त्रालय में राज्य मत्री का स्वतन्त्र प्रभार मई 2000 से अगस्त 2001 तक विधायी समिति के सदस्य अगस्त 2004 से अगस्त 2006 तक मानव संसाधन विकास समिति के सदस्य सितम्बर 2004 से अप्रैल 2006 तक राज्य सभा की स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के सद्स्य अक्तूबर 2004 से 2006 तक वित्त मन्त्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य नवम्बर 2004 से मानव संसाधन विकास समिति की विश्वविद्यालय एवं उच्चतर शिक्षा उप समिति के सदस्य मार्च 2006 से भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अप्रैल 2006 पुनः राज्य सभा के लिए निर्वाचित 2006 से सूचना प्रौद्योगिकी सम्बन्धी समिति के सदस्य सितम्बर 2006 से विशेषाधिकार समिति के सदस्य |
Musician Chitragupt
चित्रगुप्त का पूरा नाम चित्रगुप्त श्रीवास्तव था। उनका जन्म 16 नवम्बर सन 1917 को बिहार के गोपालगंज जिले के कमरैनी गाँव के शिक्षित संभ्रांत कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक एवं माध्यमिक शिक्षा-दीक्षा भी यहीं हुई, बाद में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए उन्होंने पटना विश्वविद्यालय, पटना में दाखिला लिया और अर्थशास्त्र में स्नाकोत्तर की डिग्री हासिल की। अपने बड़े भाई जगमोहन आजाद, जो पेशे से पत्रकार थे और संगीत के बेहद शौकीन। चित्रगुप्त इन्हीं से ही उत्प्रेरित होकर पं. शिव प्रसाद त्रिपाठी से विधिवत शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की, उतना ही नही भारतखंडे महाविद्यालय, लखनऊ से नोट्स मंगवा कर संगीत का नियमित अभ्यास किया करते थे। उन दिनों वह पटना विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में अध्यापन भी कर रहे थे, लेकिन इस संगीत साधक का मन यहाँ कहाँ लगने वाला था, फलस्वरूप व्याख्याता का पद त्याग कर सन 1945 ई. में वे बम्बई चले गए। चित्रगुप्त उस समय के सभी फिल्मी संगीतकरों में सबसे अधिक पढ़े लिखे संगीतकार थे। प्रारंभ में स्वभाभिक रूप से जान-पहचान एवं काम का आभाव रहा परन्तु बिहार का ही उनका एक मित्र मदन सिन्हा, जो पहले से ही बम्बई में रहता था और फिल्मी हस्तियों के बीच थोडा बहुत जान पहचान रखता था, कि मदद से ही वह संगीतकार एच.पी. दास के संपर्क में आये और उनके संगीत निर्देशन में बतौर कोरस गायक एक गाना में कोरस गाया। पुनः एक दिन बादामी नाम के मित्र से मित्रता होती है और उसके माध्यम से संगीतकार एस.एन. त्रिपाठी से मिलने जाते हैं जहां उनकी कला कौशल से ओत-प्रोत हो कर त्रिपाठी जी उन्हें अपना सहायक बनने का आमंत्रण दे डालते हैं। चित्रगुप्त इसे सहर्ष स्वीकार कर उनके साथ धुनों की यात्रा पर निकल पड़ते हैं। तब के संगीतकारों में नौटंकी, कीर्तन, पारंपरिक रीति रिवाज जैसे-शादी विवाह, पर्व-त्योहार एवं लोक संस्कृति में रचा बसा शैलियों में घुलनशील संगीत देने की क्षमता चित्रगुप्त के अलावा शायद ही किसी में रहा होगा। उनका संगीत जितना दया, भाव एवं करुणा से हृदय को छूता है उतना ही चहलकदमी भरी चंचलता भी प्रदान करता करता है। स्वतंत्र रूप से उन्हें पहली बार संगीत देना का मौका फिल्म ‘लेडी रोबिनहुड’ (१९४६) में मिला, जिसमें उन्होंने राजकुमारी के साथ दो सुमधुर गीत भी गाये. यहीं से चित्रगुप्त का फिल्मी सफर गति लेना शुरू कर दिया और चित्रगुप्त निम्नलिखित फिल्मों में बेजोड़ संगीत देने में मशगूल हो गए। सुपरहिट हीरो (१९४६), तूफान क्वीन (१९४६), जादुई रतन (१९४७) ,शेक हैंड्स (१९४७), स्टेट क्वीन (१९४७), इलेवन ओ क्लोक (१९४८), माला द माइटी (१९४८), टाईग्रेस (१९४८), जय हिन्द (१९४८), दिल्ली एक्सप्रेस (१९४९) ,जोकर (१९४९), शौकीन (१९४९), भक्त पुंडलिक (१९४९), सर्कसवाले (१९५०),वीर बब्रुवाहन (१९५०), हमारा घर (१९५०), जोड़ीदार (१९५०), हमारी शान (१९५१), भक्त पूरन (१९५२), सिकंदबाद द सेलर (१९५२), मनचला (१९५३), शिवभक्त (१९५५), इंसाफ (१९५६), जय श्री (१९५६), जिन्दगी के मेले (१९५६), नीलमणि (१९५७), भाभी (१९५७), साक्षी गोपाल (१९५७), बालयोगी उपमन्यु (१९५८), चालबाज (१९५८), तीसरी गली (१९५८), सन ऑफ सिकंदराबाद ९१९५८), बरखा (१९५९), कंगन (१९५९), नया संसार (१९५९), गेस्ट हॉउस (१९५९), काली टोपी लाल रुमाल (१९५९), मैडम एक्स वे जेड (१९५९), गैम्बलर (१९६०), पतंग (१९६०), पुलिस डिटेक्टिव ९१९६०), अपलम चपलम (१९६१), आंख मिचैली (१९६१), बड़ा आदमी (१९६१), ओपेरा हाउस (१९६१), जबक (१९६१), मतवाले नौजवान (१९६१), सुहाग सिंदूर (१९६१), हम मतवाले (१९६१), तेल मालिश बूट पोलिश (१९६१), मैं शादी के लिए चला (१९६२), किंगकोंग (१९६२), बर्मा रोड (१९६२), मैं चुप रहूंगी (१९६२), रोकेट गर्ल (१९६२), मम्मी डैडी (१९६३), काबुली खान (१९६३), घर बसा कर देखो (१९६३), एक राज (१९६३), सैमसन (१९६४), बैंड मास्टर ( (१९६४),मैं भी लड़की हूं (१९६४), महाभारत (१९६४), बागी (१९६४), गंगा की लहरें (१९६४), मेरा कसूर क्या है (१९६४), बैंक रोबरी (१९६४), ऊंचे लोग (१९६५), आकाशदीप (१९६५), आधी रात के बाद (१९६५), अफसाना (१९६६), बिरादरी (१९६६), तूफान में प्यार कहां (१९६६), वासना (१९६८), औलाद १९६८), प्यार का सपना (१९६९), गंगा की लहरें (१९६९), परदेसी (१९७०), कभी धूप कभी छांव (१९७१), प्रेम की गंगा (१९७१), साज और सनम (१९७१), संसार (१९७१) शिकवा (१९७४), बालक और जानवर (१९७५), अंगारे (१९७५), सिक्का (१९७६), तूफान और बिजली (१९७६), जागृति महिमा (१९७७), दो शिकारी (१९७८), अलाउद्दीन एंड द वंडरफुल लैम्प (१९७८), शिव शक्ति (१९८०), ज्वाला दहेज की (१९८१), इंसाफ की मंजिल (१९८८), शिव गंगा (१९८९ ) वहीं भोजपुरी फिल्मों में गंगा मैया तोहे पियरी चढैबो (१९६२), गंगा (१९६५), भौजी (१९६५), बलम परदेसिया (१९७९), धरती मैया (१९८१), हमार भौजी (१९८३), गंगा किनारे मोरा गांव (१९८४), सैयां मगन पहलवानी में (१९८५), घर द्वार (१९८५), पिया के गाँव (१९८५), घर गृहस्ती (१९८६) इसके अलावा चित्रगुप्त संगीतकार एस.एन. त्रिपाठी के सहयोगी के रूप में भी गजब का संगीत दिया जैसे नवरात्र (१९५०), नागपंचमी (१९५३), अली बाबा और चालीस चोर (१९५४), मिस माला (१९५४), तुलसी दास (१९५४), शिवरात्रि (१९५४), राजकन्या (१९५५), सावित्री (१९५५), किस्मत (१९५६), लक्ष्मी पूजा (१९५७). इन तमाम फिल्मों में चित्रगुप्त का चित्रगुप्ताना अंदाज लोगों के मन मस्तिष्क पर छाया रहा । |