अयोध्या के चन्द्रसेनिय श्रीवास्तव राजे
उत्तर प्रदेश के अवध आदि क्षेत्रो में बहुलता के साथ पाई जाने वाली कायस्थों की प्रसिद्ध उपजाति श्रीवास्तव का मूल निवास श्रावस्ती से हुआ माना जाता है । इन्ही में से एक वीर चन्द्रसेनिय श्रीवास्तव त्रिलोक चन्द्र ने सन 918 ई० में सरयू नदी पार करके अयोध्या पर अधिकार किया और वहां अपना व्यवस्थित राज्य जमाया था । उनके वंसज वहां लगभग 300 वर्ष तक राज्य करते रहे । उनके राज्य का अंत लगभग (1294 ई०) में मुहम्मद गोरी के भाई मखदूमशाहजुरन ने किया और उसी ने भगवान् ऋषभ देव का प्राचीन मंदिर ध्वस्त करके उसके स्थान पर मस्जिद बनवाई थी । भगवान् आदि देव रिशभ के उक्त जन्म स्थान पर जो शाहजूरण का टीला नाम से प्रसिद्ध है ,उक्त भग्न मस्जिद के पीछे भगवन की टोंक अभी भी है । श्री पी कारनेगी (1870 ई0) के अध्ययन के अनुसार अयोध्या के श्रीवास्तव राजवंश जैन धर्म के प्रभाव में आकर हिंसा अहिंसक हो चुके थे । अनेक प्राचीन दुहरे (जियातन ) ,जो वर्तमान में प्राप्त हैं वे मूलतः इन्ही श्रीवास्तव राजाओ द्वारा बनवाये गये हैं यद्यपि उनमे से जो बचा था उनका जीर्णोधार हो चूका है । अवध के गजेटियर (1877 ई0 ) से इस बात की पुष्टि होती है।