कायस्थ शब्द की उत्पत्ति
महाराज कैथिया के वंसज कायस्थ कहे जाते हैं उपनिषदों की रचना से पहले के समय में महाराज कैथिया का विशाल साम्राज्य था जो मूल मध्य भारत से लेकर पूर्व दक्षिण एवं पश्चिम के समुद्र तटों तक फैला था | महाराज चन्द्रसेन जो भिड़ के राजा थे जिनके वंसज चांद्रसेनीय कायस्थ कहे जाते हैं उन्होंने हिंगलाज माता के मंदिर की स्थापना कराई थी | भिड़ आज के समय में पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त का हिस्सा है | आगे चलकर कैथिया साम्राज्य कई छोटे छोटे टुकड़ो में बट गया जिनमे एक भिड़ था जिसके राजा च्नद्रसेन हुए दूसरा मध्य भारत में वर्तमान मध्य प्रदेश सहित महाराष्ट्र के कुछ हिस्से कुछ छत्तीसगढ़ हिस्सों में श्रावणी साम्राज्य था जो महाराज कैथिया के वंसज श्रावणी के नाम से था |
श्रावणी साम्राज्य राजा श्रावणी के नाम से आगे चला इनके बाद राजा अश्विनी का शाषन आया राजा अश्विनी के पुत्रों में महेद्रशाह अश्विनी और कुलपति अश्विनी हुए और आगे चलकर दोनों ने अलग अलग क्षत्रो में शाशन किया इनके बाद राजा वास्तबय का शाषन आया इनके वन्सजो ने अपने नाम के साथ अपने पिता का नाम लगाना शुरू किया इस प्रकार श्री वास्तबय शब्द अस्तित्व में आया इसी शब्द का अपभ्रंस श्रीवास्तव है |
श्रावणी साम्राज्य विशाल कैथिया साम्राज्य (राजा कैथिया का विशाल साम्राज्य , इनके वंसजो अपने नाम के साथ कैथिया जोड़ा जो आगे चलकर कायस्थ बना ) का ही हिस्सा था जो बटने के बाद राजा श्रावणी को मिला था |
विभिन्न हिन्दू ग्रंथो कायस्थों के बारे में बहुत ही बाते लिखी हैं जो निम्नवत हैं -
बहौश्य क्षत्रिय जाता कायस्थ अगतितवे। चित्रगुप्त: सिथति: स्वर्गे चित्रोहिभूमण्डले।।
चैत्ररथ: सुतस्तस्य यशस्वी कुल दीपक:। ऋषि वंशे समुदगतो गौतमो नाम सतम:।।
तस्य शिष्यो महाप्रशिचत्रकूटा चलाधिप:।।
विष्णु धर्म सूत्र (विष्णु स्मृति ग्रंथ के प्रथम परिहास के प्रथम श्लोक में तो कायस्थ को परमेश्वर का रुप कहा गया है।
येनेदम स्वैच्छया, सर्वम, माययाम्मोहितम जगत। स जयत्यजित: श्रीमान कायस्थ: परमेश्वर:।।
कमलाकरभट्ट क्रित वृहत्ब्रहम्खण्ड् में लिखा है-
भवान क्षत्रिय वर्णश्च समस्थान समुद्भवात्। कायस्थ्: क्षत्रिय: ख्यातो भवान भुवि विराजते॥
स्कंद पुराण में कायस्थ के सात लक्षणों को बताया गया है -
" विद्या वाश्च्य शुचि; धीरो , दाता परोप्कराकः ! राज्य सेवी , क्षमाशील; कायस्थ सप्त लक्षणा ; !!
भवन्तौ क्षत्रवर्णस्थौ द्विजन्मनौ महाशयी । कृतोप वितीनो स्थान वेद शस्त्रधिकारिणी ॥ (पद्म पुराण )
श्रावणी साम्राज्य राजा श्रावणी के नाम से आगे चला इनके बाद राजा अश्विनी का शाषन आया राजा अश्विनी के पुत्रों में महेद्रशाह अश्विनी और कुलपति अश्विनी हुए और आगे चलकर दोनों ने अलग अलग क्षत्रो में शाशन किया इनके बाद राजा वास्तबय का शाषन आया इनके वन्सजो ने अपने नाम के साथ अपने पिता का नाम लगाना शुरू किया इस प्रकार श्री वास्तबय शब्द अस्तित्व में आया इसी शब्द का अपभ्रंस श्रीवास्तव है |
श्रावणी साम्राज्य विशाल कैथिया साम्राज्य (राजा कैथिया का विशाल साम्राज्य , इनके वंसजो अपने नाम के साथ कैथिया जोड़ा जो आगे चलकर कायस्थ बना ) का ही हिस्सा था जो बटने के बाद राजा श्रावणी को मिला था |
विभिन्न हिन्दू ग्रंथो कायस्थों के बारे में बहुत ही बाते लिखी हैं जो निम्नवत हैं -
बहौश्य क्षत्रिय जाता कायस्थ अगतितवे। चित्रगुप्त: सिथति: स्वर्गे चित्रोहिभूमण्डले।।
चैत्ररथ: सुतस्तस्य यशस्वी कुल दीपक:। ऋषि वंशे समुदगतो गौतमो नाम सतम:।।
तस्य शिष्यो महाप्रशिचत्रकूटा चलाधिप:।।
विष्णु धर्म सूत्र (विष्णु स्मृति ग्रंथ के प्रथम परिहास के प्रथम श्लोक में तो कायस्थ को परमेश्वर का रुप कहा गया है।
येनेदम स्वैच्छया, सर्वम, माययाम्मोहितम जगत। स जयत्यजित: श्रीमान कायस्थ: परमेश्वर:।।
कमलाकरभट्ट क्रित वृहत्ब्रहम्खण्ड् में लिखा है-
भवान क्षत्रिय वर्णश्च समस्थान समुद्भवात्। कायस्थ्: क्षत्रिय: ख्यातो भवान भुवि विराजते॥
स्कंद पुराण में कायस्थ के सात लक्षणों को बताया गया है -
" विद्या वाश्च्य शुचि; धीरो , दाता परोप्कराकः ! राज्य सेवी , क्षमाशील; कायस्थ सप्त लक्षणा ; !!
भवन्तौ क्षत्रवर्णस्थौ द्विजन्मनौ महाशयी । कृतोप वितीनो स्थान वेद शस्त्रधिकारिणी ॥ (पद्म पुराण )
कायस्थ शब्द की उत्पत्ति
'कायस्थ शब्द आदि राजा कैथिया के नाम का अपभ्रंस है महाराज कैथिया के वंसज अपने कुल के सम्मान में अपने नाम में कैथिया जोड़े थे जो आगे विकृत होकर कायस्थ हुआ |
'कायस्थ शब्द आदि राजा कैथिया के नाम का अपभ्रंस है महाराज कैथिया के वंसज अपने कुल के सम्मान में अपने नाम में कैथिया जोड़े थे जो आगे विकृत होकर कायस्थ हुआ |